बर्दाश्त क्यों आखिर क्यों
[ बर्दाश्त क्यों आखिर क्यों ]
आज के वक्त में युवा पीढ़ी बर्दाश्त से बाहर जा रही है उन्हे जरा जरा सी बात बर्दाश्त नहीं होती ऐसी ही एक रोचक कहानी के साथ प्रस्तुत है गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी की रचना
आइए पढ़ते है -
दो घरों के बीच खाली पड़े प्लॉट में अक्सर बच्चे खेला करते थे उसी प्लॉट के राइट साइड (बगल वाला ) घर गुड्डू का था
वह भी अक्सर दोस्त और गली मुहल्ले के बच्चो साथ कंचे खेलने लग जाता था ।
एक दिन की बात क्या हुई कि गुड्डू को खाना लेकर बड़े भाई साहब की दुकान पर जाना था लेकिन गुड्डू बगल वाले प्लॉट में ही कंचे खेलने मे व्यस्त दिख रहा था ।
" गुड्डू ओ गुड्डू " गुड्डू की अम्मी ने आवाज दी
" चल रोटी लेकर जा , दुकान पर भाई साहब के लिए "
गुड्डू की अम्मी ने एक बार फिर दोहराया ।
" अच्छा बस आ रहा हु अभी " गुड्डू ने जवाब दिया
यह सुनकर उसकी अम्मी वापस घर में चली गई
" ओए गुड्डू ! चल अम्मी बुला रही है खाना दिया दुकान पर और तू भी खा ले ",
अम्मी के बाद गुड्डू की बहन ने आवाज दी ।
लेकिन गुड्डू कंचे खेलने में इतना व्यस्त था कि उसे पता ही नही चला कि कब एक डेढ़ घंटा बीत गया ।
कुछ ही देर बाद गुड्डू के बड़े भैय्या आ गए उन्होंने देखा गुड्डू कंचे खेल रहा है घर के काम की नही सुन रहा है ।
ये खबर सुनते ही वह घर से प्लॉट मे गए और सारे बच्चों के कंचे छीन लिए और सबको भगाया
" चलो अपने अपने घर " बड़े भैय्या ने गुस्से से सभी बच्चोब से कहा ।
गुड्डू की ओर तिरछी नजरों से देखते हुए बड़े भैय्या ने कहा -
" सीधा घर चल " , " घर बताता हु तुझे "
गुड्डू डर के सीधा घर गया पीछे पीछे बड़े भैय्या भी चल दिए
" दो रखता इसके कान के नीचे " बड़े भैय्या से अम्मी ने बोला । " अबकी बार देख न लू ", " इन बच्चों के साथ कंचे खेलता हुए " बड़े भैय्या ने फटकार लगाई ।
" पटाक पटाक " दो झापड़ (चांटे ) और दिए
आंखों से आंसू भी आ गए लेकिन क्या करता गुड्डू
" अबे खेलेगा " बड़े भैय्या झूनझलाए
"नहीं" (रोते हुए ) गुड्डू बोला ।
फिर क्या गुड्डू ने यह बात गांठ बांध ली और जब्ब्भी कोई कार्य खेल वगैरा खेलता हमेशा डरता कि कहीं घर से कोई पीछे से आकर न देख ले ।
गुड्डू का खेलने का , घूमने फिरने का, दोस्तों संग मस्ती करने का आदि बहुत मन करता था लेकिन जबसे उसे बड़े भैय्या ने फटकार लगाई और दो कसके झापड़ भीं लगाए तब से वह अपनी इच्छाओं को मारता रहा ।
" गुड्डू चल रहा है बाजार " अम्मी ने पुछा
" नही ", गुड्डू ने जवाब दिया ।
कुछ दिन बाद जब जब किसी शादी में जाने के बात आई
" गुड्डू शादी में चलेगा ", अम्मी ने पूछा
गुड्डू का बस यही जवाब होता
" नही "
गुड्डू , गुड्डू तो बस घर के कामों में हाथ बाटता या फिर दुकान के ।
अब चाहे उसे घर में नल चलवाना पड़े
या घर का कोई सामान लाना पड़े
या फिर दुकान पर बैठना पड़े
हर काम चुपचाप कर देता यह नहीं कि देर हो जायेगी
बल्कि इसलिए कि कही कोई गलती हो गई तो गुड्डू को ही भुगतना पड़ता ।
एक दिन क्या हुआ कि गुड्डू ने हिम्मत कि और छुपते छिपाते
चार घर आगे एक प्लॉट और खाली था वहां भी बच्चे अक्सर कंचे खेलने आते थे वहां कंचे खेलने चला गया ।
उस प्लॉट से पीछे गली की एक बिल्डिंग दिखती थी ।
कुछ बच्चो ने उस बिल्डिंग के शीशे तोड दिए , ऐसा कई बार हो चुका हैं जैसे ही मकान मालिक गली से घूमकर इस गली में
बच्चो को पकड़ने आता तब तक सभी बच्चे भाग जाते थे ।
और वह मकान मालिक दो चार खरी खोटी सुनाकर चला जाता ।
लेकिन इस बार मकान मालिक के लड़के ने एकचाल चली और
आज कोई भी पत्थर हमारे शीशे को तोड़ने के लिए मारेगा उसका कैसे पकड़ा जाए ?
" जैसे ही कोई पत्थर या कंचे फेंके भाई तू बिल्डिंग की खिड़की में खड़ा होकर खरी खोटी सुनाना और मुझे इशारा कर देना मैं दूसरी गली से भागा भागा जाकर एक आद को पकड़ लूंगा " ,
दूसरी गली के मकान मालिक का लड़का सलीम ने अपने भाई जहीर से कहा ।
" ठीक है " जहीर ने कहा ।
आज ही तो गुड्डू ने दोपहर में इरादा किया कि बहुत दिन हो गए कंचे खेले हुए आज कंचे खेलने चलता हूं
वह अपने दोस्त इमरान के साथ कंचे खेलने गया ।
वहां पर गली का शैतानियत करने वाला अकबरी का लड़का यूसुफ (नेता) कहते थे , वह भी कंचे खेल रहा था ।
कंचो के जीत हार की बाजी लगने लगी और नेता कंचे जीत जीत कर ईकठ्ठा किए जा रहा था
गुड्डू भी लालच में आकर नेता के साथ कंचे खेलने लगा जैसे ही वह कंचे गुड्डू से जीत गया ।
उसने अपनी वही पुरानी हरकत की
कुछ कंचे उस दूसरी गली मे बनी सलीम की बिल्डिंग में दे मारे जिसका एक शीशा टूट गया ।
ठीक उसी प्रकार सलीम का भाई खिड़की से ही नेता और वहा खड़े कई लड़को को वह गाली देने लगा और खरी खोटी सुनाता रहा ।
इधर नेता मजे ले रहा था
" आ जा, आ जा पकड़ ले , मुझे पकड़ के दिखाओ "
खूब हंसी ठहाके लगा रहा था बाकी लड़के भी यही कर रहे थे नेता के साथ ठहाके लगा रहे थे
अचानक पीछे से सलीम आ गया और गुड्डू और नेता को पकड़ लिया दोनो ही डर गए ।
" छोड़ो मैने नही मारे कंचे , मैं नही था ये (नेता) था "
गुड्डू ने अपनी फरियाद सुनाई पर सलीम के गुस्से के आगे सब फीका था ।
" भाई मैं नहीं था मैं तो मजाक कर रहा था गलती से तुम्हारे शीशे पर लग गया " नेता ने अपनी गुहार लगाई ।
" मैं तो कंचे छीन का फेंक रहा था " नेता बोला ।
लेकिन सलीम के गुस्से के आगे इनकी नही चली , सलीम दोनो को घसीटते हुए उसी बिल्डिंग वाले अपने घर ले गया
और दो चार कस कस के थप्पड़ लगाए जिससे उनकी आंखें आंसुओ से भर आई ऊपर से दो एक डंडे भी कमर पर धर दिए ।
" अब फेंकोगे पत्थर " सलीम ने कहा
" नही नही नही " दोनो के मुंह से यही निकल रहा था
एक फरियाद थी , एक गुहार थी कि हमें छोड़ दिया जाए
कुछ देर बाद नेता की मां अकबरी को बुला लिया गया
और इधर गुड्डू की अम्मी को भी बुला लिया गया
और दोनो की शिकायतों का बखान किया गया ।
और फिर कई नसीहत देकर दोनो को छोड़ दिया गया
गुड्डू की अम्मी और अकबरी दोनो ने माफी मांगी भाई साहब अब नही करेंगे ।
दोनो अपने अपने घर लौट गए
गुड्डू तो आते ही चारपाई पर पड़ गया गुस्से में उसने खाना भी नहीं खाया शाम को जब उसकी आंख खुली तो उसे बुखार हो चला था ।
गुड्डू को सभी लोग करीब से जानते थे कि उसने ऐसा नहीं किया होगा लेकिन वह सलीम के गुस्से की भेंट चढ़ गया
जब नादान और बेकसूर लोग अपनी सफाई पेश कर दे और सजा देने वाले को यकीन न आए तो जुल्म सह लेना ही पड़ता है आखिर बार बार बचने की भिख मांगने से अच्छा हैं मार ले
यही कायदा तो गुड्डू का था पीट लेगा लेकिन जुबान से उफ्फ तक न करेगा
हाल फिलहाल उसे बुखार था और फिर से वह उसी हालत मेने चला जैसी उसने बना ली थी ।
न किसी पर ज्यादा विश्वास करना है न किसी से बोलना है
न किसी को समझाना है बस किसी कांबको कहा कर दिया नही तो चुप चाप घर में टी वी देखना या फिर सोना
बस यही दो चार काम रह गए थे इस सीधे सादे लड़के को बेवकूफ बनाना आसान था क्योंकि हर किस्से में गुड्डू ही फंस जाता था।
उसके भी बर्दाश्त की हिम्मत थी कि वह किसी से कहता नही था इसी वजह से वह सबका चहेता भी था ।
किसी की खबर इधर से उधर करना उसे नही आता था
और फिर जब गुड्डू धीरे धीरे और बड़ा हुआ तो उसमें अपने रास्ते अलग कर लिए और चल पड़ा उसी जीवन की राह पर जिस पर बर्दाश्त लिखा था
यानी अगर हम बर्दाश्त करते रहे तो जीवन में कोई परेशानी नहो आएगी यही जीवन है ।
चंद लाइन को आधार मानकर जीवन जीने वाला गुड्डू अब लगभग १६ वर्ष का हो चला था ।
गुड्डू दुकान पर बड़े भैय्या को खाना देने के बाद कुछ देर दुकान पर बैठ जाता था तब तक बड़े भैय्या खाना खा लेते थे
एक दिन उसने एक रूपया बिना बताए गल्ले से ले लिया
सिर्फ इस लिए की मुहल्ले की गली में एक दुकान से गुड्डू ने इनामी पर्ची खोली थी जिसमे एक नंबर और चाहिए था
जिसके निकालने से गुड्डू को एक " टेबल लैंप " प्राप्त हो सकता था ।
जैसे ही खाना टिपिन भैय्या ने बंद करके गुड्डू को दिया
" जेब दिखा " ,"क्या है जेब में ? "
गुड्डू ने चुप चाप जेब दिखा दी ।
बड़े भैय्या जेब में पैसे टटोलते हुए ,
जेब से वही एक रूपया निकला जो गुड्डू ने गल्ले से लेकर बिना बताए जेब में रख लिया था ।
" ये रखा था न तूने जेब में "
" पैसे चुराएगा "
" लॉटरी खोलेगा "
दो झापड़ रख दिए , उसके बाद सामान तौलने का झावा होता है उससे भीं दो चार बार पीटा ,
गुड्डू की आंखों में आसूं तो थे ही लेकिन यह मार उसके दिमाग में घर कर गई कि बर्दाश्त कर लेकिन बगैर पूछे किसी के सामान को हाथ नहीं लगाना है ।
टांगो में दो चार डंडी से पिटाई की और खरी खोटी बोलते हुए वो एक का सिक्का फेंक के मुंह पर मारा ।
" ले और लेके निकल ले इसे " बड़े भैय्या ने क्रोधित शब्दो से कहा ।
गुड्डू ने सोचा जब इतना पीट लिया हूं तो एक रूपया तो लेकर ही जाऊंगा ।
उसने वह एक रूपया उठाया ,, साइड में रखा टिपिन उठाया और चल दिया
चलते चलते दो झापड़ और दिए बड़े भैय्या ने लेकिन कोई बात नही बर्दाश्त की हद थी गुड्डू में , सो बर्दाश्त कर गया
कोई और होता तों शायद आपस में भिड़त हो जाती ।
खैर गुड्डू वहां दुकान से निकला और उस मार की बर्दाश्त के गम से बाहर आकर वह रास्ते में उसी दुकान पर रुका जहां उसने लॉटरी खोली थी और उसे एक नंबर और चाहिए था
उसने पचास पैसे वाली दो लॉटरी एक साथ ली और पहली खोली किस्मत ने सारे रास्ते पलट दिए गुड्डू का एक नंबर निकल आया ।
उस एक नंबर को उसने दुकानदार को दिया ।
" भाई आप एक दो घंटे बाद आ जाना आपका इनाम आपको मिल जाएगा " दुकानदार ने गुड्डू से कहा ।
दूसरी पर्ची खोली पर वह खाली गई
गली में खबर उड़ गई गुड्डू का टेबल लैंप निकला है
गुड्डू का टेबल लैंप निकला है इनाम में
खबर घर तक पहुंच गई
गुड्डू ने दुकानदार के कई चक्कर लगाए
" भाई साहब मेरा टेबल लैंप आ गया ",
गुड्डू ने दुकानदार से पूछा ।
दुकानदार ने जवाब दिया : आएगा तो तेरे घर पहुंचा दूंगा एक- आद घंटे और रुक जा ।
टेबल लैंप आते ही रास्ते से गुजर रही गुड्डू की अम्मी को दे दिया , घर आकर मालूम हुआ कि इसके लिए एक पढ़े लिखे नौजवान के काम आने वाली चीज है सो एक बार दिखानेबके बाद रख दी गई ।
गुड्डू ने बहुत बार कोशिश की एक बार दिखा दो उसमे बल्ब कैसे जलता है लेकिन घर में किसी के जू तक न रेंगी ।
फिर वही बर्दाश्त कर, बर्दाश्त कर , बर्दाश्त करने के इस रवैए ने एक दिन उसे लैंप का जिक्र तक भुला दिया ।
बहुत सी कुरबानिया और अपनी इच्छाओं को दफन करके बर्दाश्त करने की कला सिर्फ एक दयालु और महान इंसान में ही आ सकती है
फिर चाहे उस बर्दाश्त को जन्म देने वाले किसी के अपनें ही क्यों न हों अपने नही रहते
क्योंकि जो हक़ छीन लेता है वह बर्दाश्त को जन्मब्दे देता है लेकिन ह्रदय में उसके लिए नफरत घोल देता है ।
यही सच है ।
- गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी
- दिनांक : १८/०१/२०२४
प्रतियोगिता : बर्दाश्त करना ही जीवन है मेरी स्वरचित रचना
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Shnaya
22-Jan-2024 12:17 AM
Very nice
Reply
नंदिता राय
22-Jan-2024 12:14 AM
Nice
Reply
Sushi saxena
21-Jan-2024 11:00 PM
Nice
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